<p style="text-align: justify;"><strong>नई दिल्लीः</strong> अगर आजादी के 70 साल के बाद भी जाति और धर्म पर चुनाव लड़ा जाए तो मतलब साफ है कि लोकतंत्र अभी भी खिलौना बना हुआ है. सच्चाई यही है कि चुनावी मौसम में राजनेता जाति और धर्म की राजनीति का दोहन करने से बाज
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